मैं प्रोफेसर एच0जी0 ह्वैवेज की कृति ‘पैनाडियोर कन्ट्रोवर्सी एण्ड दि बुद्धिष्ट सोसाइटी’ (Panadiyor Controversy and the Buddhist Society) को चुनौती दिये बिना नहीं रह सकता। उसमें शानदार शब्दों में एक भयंकर भ्रम, जिसे योग कहा जाता है, द्वारा लोगों को गुमराह किया है। लोग उसपर इसलिए विश्वास करते थे कि वह एक विश्वविद्यालय का माना हुआ अध्यापक है। उसके अनुसार भक्यि या अन्तर्ध्यान द्वारा ज्ञान, बोध, बुद्धि विकास, आत्मशक्ति, पूर्ण तंदुरूस्ती और आध्यात्मिक शक्तियां आदि गुण प्राप्त हो जाते हैं।
व्यवहार की कुछ क्रिया के सिवा, जिनको प्रवृत्ति कहा जाता है, मनुष्य को सभी ज्ञान जन्म से लेकर ही पांच ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त होता है न कि समाधि द्वारा। वह व्यक्ति जिसकी पांचों ज्ञानेन्द्रियां नहीं हैं, मात्र एक आलू की तरह ही जीवन व्यतीत करेगा, चाहे कुछ भी हो। अगर ज्ञान समाधि द्वारा ही प्राप्त होता है, जैसे प्रोफेसर ह्वैवेज कहता है, तो हमारे देश के सारे विद्यालय बन्द कर देने चाहिए और इनकी जगह समाधि आश्रम खोल देने चाहिए। विद्या पर इतनी बड़ी राशि खर्च करने का क्या अर्थ है।
ज्ञानेन्द्रियों द्वारा वास्तविक प्रत्यक्ष ज्ञान के विपरीत एक आदमी का कल्पित ज्ञान नकली भी हो सकता है। उदाहरण के लिए मानसिक विकार वाले लोगों का झूठा विश्वास उनका कल्पित अनुभव ही होता है, जिसके पीछे कोई सच्चाई नहीं होती।
एक आदमी में झूठे विश्वास रासायनिक, भौतिक, जैव वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों द्वारा उत्पन्न किये जा सकते हैं। मादक दवाएं, मादक पदार्थ, ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करने वली वस्तुएं जैसे ढ़ोल पीटना, ताली बजाना, मंत्र-भजन गाना, नृत्य करना, शारीरिक स्राव, विटामिन और पाचक रसों में गड़बड़, डर, सदमा और हिप्नोटिज्म आदि के द्वारा कमजोर दिल के व्यक्तियों में झूठे विश्वास पैदा किये जा सकते हैं।
एक मद्रासी, जोकि लोक हाऊस के प्रेस में काम करता था, को उसकी पत्नी उसे पागलपन की अवस्था में मेरे पास हिप्नोटिज्म द्वारा इलाज के लिए लेकर आई। जांच करने से पता चला कि उसके पागलपन का कारण ‘योग समाधि’ थी।
उस आदमी ने मद्रासी पुस्तक ‘योगिक समाधि’ पढ़ी थी। इसने पढ़ा था कि अगर कोई व्यक्ति ‘पद्मासन’ में बैठकर 109 बार ‘ओम-रीम-जैमना-शक्ति’ के मंत्र का जाप करे, तो उसकी दिमागी आंख खुल जाती है। वह रोशन-दिमाग बन जाता है और भविष्य में घटने वाली हर घटना को वह पहले ही जान लेता है।
उस व्यक्ति ने इसकी जांच करनी चाही। एक रात वह अपने बिस्तर पर चौकड़ी मार कर बैठ गया और उसने ‘ओम-रीम-जैमना-शक्ति’ के मंत्र का जाप करना आरम्भ कर दिया। उसकी पत्नी के अनुसार वह मंत्र का पूरा कोर्स खत्म न कर सका। मंत्र को 50-60 बार कहने के पश्चात उसने ‘मुरूगा-मुरूगा’ कहकर घर से भागना आरम्भ कर दिया। उसी दिन से वह पागलों जैसा व्यवहार करने लगा।
मनोचिकित्सा की किताबें ऐसे अनेक मामलों से भरी पड़ी हैं। मन्दिर में पूजा करते समय, पैशाचित नृत्य में, धार्मिक जुलूजों और मीटिंगों इत्यादि में इस प्रकार के ऊटपटांग व्यवहार का कारण अस्थाई पागलपन होता है। जो ढ़ोल पीटने द्वारा, मंत्र भजन, नृत्य संगीत जय-जयकार द्वारा उन लोगों में उत्पन्न कर दिया जाता है।
धार्मिक भ्रम, जिसका नाम समाधि है, यह एक धीमी चाल से चलने वाली प्रक्रिया है, जो अपने आप हिप्नोसिस उत्पन्न कर देतीहै। समाधि द्वारा व्यक्तियों के प्राप्त किये झूठे अनुभव अक्सर उनके धार्मिक भ्रमों के अनुसार ही होते हैं। एक ईसाई को, समाधि द्वारा ‘जीहोवा’ के दर्शन हो सकते हैं, जोकिस्वर्ग में एक सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं, उसके दाई तरु ईसा मसीह हैं, उसके चारों ओर सुंदर पंखों वाले देवता गीतगा रहे हैं। एक हिन्दू या बौद्ध को अपने पिछले या आने वाले जन्म के बारे में झूठा विश्वास हो सकता है। एल0एस0डी0, गांजा, अफीम, पोस्ट इत्यादि भी इस तरह के झूठे विश्वास उत्पन्न कर सकते हैं।
कुछ आदमी गहरी समाधि द्वारा ‘करप्टिसथीसिया’ (Cryptesthesia or Cryptaesthesia) नाम की एक बीमारी का शिकार हो जाते हैं। इस बीमारी में रोगी को पागलों जैसा यह विश्वास हो जाता है कि वह दैवी शक्ति वाला आदमी है।
अनपढ़ और भोले-भाले लोग जब मानसिक विकार का शिकार हो जाते हैं, तो उन्हें पागल कहा जाता है। उनकी किसी भी बात को महत्व नहीं दिया जाता। दूसरी ओर जब इस मानसिक विकार का शिकार कोई चालाक व्यक्ति हो, तो वह अपने श्रोताओं या पाठकों को यह यकीन करा देगा कि उसको ब्रह्म ज्ञान, अन्तिम सच्चाई बोध और परमात्मा में लीन होने वाले गुण प्राप्त हो गये हैं। हो सकता है कि इससे उसे बहुत से श्रद्धालु और चेले मिल जाएं। मानसिक विकार ग्रस्त व्यक्ति या असाधारण योग्य और बुद्धिमान व्यक्ति आमतौर पर धर्म के प्रचारक और नींव डालने वाले होते हैं। मादक पदार्थों के साथ समाधि पर भी रोक लगनी चाहिए और इसको गैर कानूनी घोषित करना चाहिए, क्योंकि इनदोनों का मनुष्य के मन पर एक जैसा ही प्रभाव पड़ता है।
प्रोफेसर ह्वैवेज कहते हैं कि समाधि में बैठे व्यक्ति के शरीर से प्रकाश की सुगंध उत्पन्न होती है। यह समाधि में बैठे व्यक्ति को अनुभव होती है, मैं और आप इसे नहीं देख सकते। वह कहते हैं कि पढ़े-लिखे तर्कशील व्यक्तियों को यह दिखाई नहीं देती क्योंकि वे ऐसी किसी वस्तु में विश्वास नहीं करते।
कितना गलत वर्णन है यह। बेशक वे अणु-परमाणु कास्मिक किरणें, आक्सीजन और हाइड्रोजन को अपनी आंखों से नहीं देख सकते, पर फिरभी ये तर्कशील इनके अस्तित्व को नहीं रद्द करते क्योंकि उनको मालूम है कि ऐसी अदृश्य वस्तुओं के बारे में वैज्ञानिक विधि से जांच पड़ताल की जा सकती है और इसको प्रमाणित किया जा सकता है, जबकि समाधि वाले प्रकाश के साथ ऐसा नहीं है।
यह कितनी हास्यास्पद बात है कि प्रकाश की सुगंध उस व्यक्ति में उत्पन्न होती है, जो शुद्धि के मार्ग पर पांचवी अवस्था को प्राप्त कर लेता है। यह समाधि लगाने वाले मानसिक रोगी का प्रमाण बेशक बुद्धिमान व्यक्तियों को यह दिखाई नहीं देता। यह बात उतनी ही हास्यास्पद है जितनी कि किसी मानसिक रोगी का, किसी मानसिक अस्पताल में किसी नर्स को यह कहना कि ‘मैं तुमसे अधिक पढा-लिखा हूं, इसलिए मेरी बात सत्य है। आपके पास मेरी जितनी योग्यता नहीं है।’
अपनी इस धारणा के प्रमाण स्परूप कि समाधि में आदमी के शरीर से प्रकाश की सुगन्धि उत्पन्न होती है, प्रोफसेर ह्वैवेज अपने पाठकों का ध्यान दो अमेरिकी स्त्रियों द्वारा लिखी पुस्तक लोहे के पर्दे के पीछे मनोवैज्ञानिक अनुसंधान’ की ओर दिलाता है। यह बहुत अनोखी बात है कि प्रोफेसर खुद भी किताब की तस्वीरों के पत्तों और कलियों के चारों तरु प्रकाश वाले चमत्कार को देखने में सफल नहीं हुआ। क्या पेड़-पौधे भी समाधि द्वारा पवित्रता के मार्ग पर पांचवी अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं और अपने में प्रकाश उत्पन्न कर सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने जीवित वस्तुएं या वृक्षों के आगे किसी प्रकार का कोई प्रकाश चक्र नहीं देखा। ऐसे प्रकाश चक्र अगर हैं भी तो वह तापमान के अंतर के कारण होते हैं न कि प्रकाश के उत्पन्न होने के कारण।
-अब्राहम टी कोवूर
अब्राहम टी कोवूर द्वारा रचित ‘और देव पुरूष हार गये’ पुस्तक से साभार, चित्र- साभार गूगल सर्च
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